धुबरी, असम यह बात 1970 की है एक जज साहब की तैनाती होती है जिनका नाम होता है एन के चौधरी जैसे ही एन के चौधरी अपनी सरकारी बंगले में जाते हैं जाने के बाद कहते हैं कि मैं यहां रह नहीं पाऊंगा पूछा जाता है कि यहां क्यों नहीं रह पाओगे तो वह कहते हैं कि यहां पर भूत रहते हैं उन्होंने जैसे ही उच्च अधिकारियों को जैसे ही अपनी सरकार को यह बात पहुंचाई तो उनका बंगला खाली करा दिया गया उनके बाद फिर दूसरे जज की नियुक्ति होती है तो दूसरे जज ने भी यही कहा कि यहां पर भूत रहते हैं अब उस सरकारी बंगले को लोग सरकारी बंगले के नाम से कम और भूत बंगले के नाम से ज्यादा जानने लगे
सरकार ने उस बंगले को तुड़वाकर इसकी खुदाई जब कराते हैं तो उसमें से चार लाशें निकलती हैं और जैसे ही चार लाशों की बात सामने आती है तो इस मामले की जांच पड़ताल की जाती है और पता चलता है कि एक जज ने यह चारों कत्ल किए थे जैसे ही इस मामले की सुनवाई होती है उसके बाद जज को यह सजा सुनाई जाती है कि इन्हें फांसी के फंदे पर तब तक लटका के रखा जाए जब तक क्या इनके प्राण न निकल जाए ऐसा ही होता है संभवते भारत के इतिहास की यह पहली ऐसी घटना है जिसमें किसी जज को फांसी की सजा न केवल सुनाई गई हो बल्कि तख्ते पर भी चढ़ा दिया गया हो
यह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में भी ऐसे बताया जाता है कि किसी जज को कभी फांसी पर नहीं चढ़ाया गया आज कहानी उस बंगले की है आज कहानी उस जज की है आखिरकार पूरा मामला क्या था इसी पर ही प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे… पूरी कहानी जानने के लिए नीचे वीडियो पर क्लिक करें