बलरामपुर । सिद्धार्थनगर एक गांव की मस्जिद में मौलाना साहब नमाज पढ़ाते थे और वहां के बच्चों को कुरान और कायदा भी पढ़ाते थे बस मौलाना साहब के पास यही काम था नमाज पढ़ाने का और बच्चों को पढ़ाने का इसके अलावा जो खाली वक्त होता था उस खाली वक्त गुजारने के लिए या तो किसी के पास इधर-उधर बैठ जाए करते थे या फिर अपनी छत पर बैठकर किताबें पढ़ना शुरू कर दिया करते थे एक दिन पढ़ते-पढ़ते पड़ोस की महिलाओं से बातचीत करने लगते हैं और बातचीत का सिलसिला कुछ ऐसा शुरू होता है कि वह महिला अपने घर की हर एक बातें मौलाना साहब से शेयर करना शुरू कर देती है
कब उनकी दोस्ती हो जाती है और कब उनकी दोस्ती मोहब्बत में बदल जाती है और वही मोहब्बत कहीं ना कहीं दोनों के बीच में फिजिकल रिलेशन को और मजबूत कर देती है यह बात उस महिला के घर के अलावा बाकी सब को पता था जब यह बात धीरे-धीरे करके पूरे गांव में फैल जाती है गांव के लोगों को गुस्सा आता है वह कहते हैं कि मौलाना साहब आपको यहां से जाना होगा और मौलाना साहब को गांव से बाहर कर दिया जाता है
थोड़े वक्त के बाद एक नए मुलाना की एंट्री होती है वह भी कुछ ऐसे ही कर रहे थे पांचों वक्त की नमाज पढ़ाने के अलावा कुछ बच्चों को ट्यूशन दिया करते थे उन्हें कुरान और कायदा पढ़ाया करते थे अब खाली खाली वक्त जो बचा है वह अपनी किताबों में या फिर अपने कामों में लगा दिया करते थे और खाली वक्त गुजारने के लिए छत पर आकर बैठ जाते थे लेकिन इस बार मौलाना से दोस्ती होती है उस महिला से नहीं बल्कि पड़ोस की एक बेटी से हो जाती है… पूरी कहानी जानने के लिए नीचे वीडियो पर क्लिक करें